Sanskrita Sloka
श्लोक 1 . 44
अहो बत महत्पापं कर्तुं व्यवसिता वयम् |
यद्राज्यसुखलोभेन हन्तुं स्वजनमुद्यताः || ४४ ||
अहो – ओह; बत – कितना आश्चर्य है यह; महत् – महान; पापम् – पाप कर्म; कर्तुम् – करने के लिए; व्यवसिता – निश्चय किया है; वयम् – हमने; यत् – क्योंकि; राज्य-सुख-लोभेन – राज्य-सुख के लालच में आकर; हन्तुम् – मारने के लिए; स्वजनम् – अपने सम्बन्धियों को; उद्यताः – तत्पर |
भावार्थ
ओह! कितने आश्चर्य की बात है कि हम सब जघन्य पापकर्म करने के लिए उद्यत हो रहे हैं | राज्यसुख भोगने कि इच्छा से प्रेरित होकर हम अपने सम्बन्धियों को मारने पर तुले हैं |
तात्पर्य